जनजातीय छात्रावासो की
स्थिती दयनीय प्रशासन मोन[ शैलेन्द्र जोशी ]
धार जिले में जनजाति कार्य विभाग के अंतर्गत संचालित हॉस्टल में गंभीर दुर्घटनाओं के उपरांत भी विभाग के सहायक आयुक्त जिले में संचालित होस्टलों में समस्याओं को लेकर गंभीर नही
धार जिले में अलग-अलग घटनाओं में हॉस्टल में निवासरत आदिवासी मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है
जिले के करीब- करीब सभी हॉस्टल की हालत चिंताजनक दिखाई दे रही है। हम यह बात ऊपरी तौर पर नहीं बल्कि समय-समय पर हॉस्टल में जाकर रियलिटी चेक करने पर बता रहे हैं । पूर्व में धार जिला मुख्यालय सहित केसुर के हॉस्टल में पाई गई गंभीर शिकायतों को प्रमुखता से प्रसारित किया इसके उपरांत भी इन हॉस्टल के जवाबदारी अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई जो कई सवाल खड़े करता है । इसी प्रकार रियलिटी चेक करने पर धार जिला मुख्यालय पर ही एक और गंभीर मामला प्रकाश में आया जहां हॉस्टल में बच्चों के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं पाई गई यहां तक की हॉस्टल अधीक्षिका स्वयं बच्चों के साथ रहने को मजबूर है जबकि हॉस्टल वार्डन के लिए अलग से क्वार्टर बना हुआ है लेकिन गत डेढ़ वर्षो से यहां रही वार्डन ने न केवल क्वार्टर खाली किया बल्कि हॉस्टल के अन्य कमरों में भी ताला लगा रखा है जिसकी शिकायत वरिष्ठ कार्यालय तक को लिखित में की गई इसके उपरांत भी डेढ़ वर्ष बीत जाने के बाद स्थिति जो कि क्यों बनी हुई है
यही नहीं अधिकारियों के निवास स्थान के समीप बने जनजातीय संयुक्त कन्या आश्रम में वार्डन की अपनी समस्या है लेकिन उससे कई गंभीर समस्या यहां रहने वाली छात्राओं को है जिनके पास पढ़ाई करने के लिए स्वच्छ वातावरण भी उपलब्ध नहीं है यहां तक की 100 सीट के इस छात्रावास में मात्र 20 पलंग ही उपलब्ध है ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस हद दर्जे की लापरवाही प्रशासन की यहां देखने को मिल रही है पलंग के अभाव में छात्राएं नीचे जमीन पर बिस्तर लगाकर सोने को मजबूर हैं । यह हालात जिला मुख्यालय स्थित छात्रावास के हैं तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में बने छात्रावास की क्या स्थिति होगी और इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जनजाति कार्य विभाग में सब कुछ गोलमाल ही चल रहा है विभाग के अंतर्गत होने वाली शिकायतों पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है