बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व: रानी बैगा की विरासत संभाल रही बाघिन, ग्रामीणों की चिंता के बीच संरक्षण की नई चुनौती
कृष्ण कुमार उपाध्याय
उमरिया, मध्य प्रदेश — बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की पतौर एवं पनपथा रेंज के अंतर्गत स्थित कोटिया और कुशमहा गांव के बीच बहने वाले एक छोटे से नाले के आसपास की हरियाली अब एक नई बाघिन का बसेरा बन चुकी है यह वही इलाका है जहां 3 अप्रैल को प्रसिद्ध बाघिन ‘रानी बैग’ की मृत्यु हुई थी। रानी बैगा की मौत के बाद प्रशासन ने बाघिन की गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के लिए तमाम प्रयास किए, परंतु बाघिन बार-बार उसी क्षेत्र में लौट आती है
प्राकृतिक आवास की खोज में बाघिनद्वारा चुना गया यह स्थान, नाले के समीप हरियाली और एकांत से भरपूर है
लेकिन इसके कारण अब पास के गांवों में रहने वाले लोगों को जान-माल की चिंता सताने लगी है। बाघिन की लगातार उपस्थिति से ग्रामीणों की पशुधन क्षति की घटनाएं सामने आई हैं, जिससे आक्रोश भी बढ़ रहा है
हालात इतने गंभीर हो गए कि ग्रामीणों ने पनपथा वन परिक्षेत्र कार्यालय के सामने धरना देकर अपनी सुरक्षा की मांग रखी। ग्रामीणों का कहना है कि वे वन्यजीव संरक्षण का सम्मान करते हैं, लेकिन उन्हें भी सुरक्षित जीवन चाहिए
बांधवगढ़ नेशनल पार्क प्रशासन ने स्थिति पर संज्ञान लेते हुए बाघिन की निगरानी के लिए अतिरिक्त वनकर्मियों की तैनाती की है और ग्रामीणों के बीच जागरूकता अभियान भी शुरू किया गया है। अधिकारियों का कहना है कि बाघिन को सुरक्षित रूप से किसी उपयुक्त जंगल क्षेत्र में स्थानांतरित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि इंसान और वन्यजीव दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके
यह घटना एक बार फिर मानव और वन्यजीवों के बीच संतुलन साधने की चुनौती को उजागर करती है। संरक्षण के इस युग में, जहां बाघों की संख्या बढ़ना गर्व की बात है, वहीं उनके लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित करना भी उतना ही जरूरी हो


















