राष्ट्रीय एकता दिवस पर विशेष
रियासतों के विलीनीकरण में लौहपुरुष सरदार पटेल का अविस्मरणीय योगदान — डॉ. विनोद पांडेय
मनेंद्रगढ़। इतिहासकार डॉ. विनोद पांडेय बताते हैं कि भारत की आज़ादी के बाद तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति, दूरदर्शिता और कूटनीतिक दक्षता से 562 रियासतों का भारतीय संघ में विलय कर एक विशाल और अखंड भारत का निर्माण किया। यह कार्य भारत के इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
विभाजन के समय ब्रिटिश योजना और रियासतों की स्थिति
डॉ. पांडेय बताते हैं कि जब अंग्रेजों का भारत छोड़ना निश्चित हो चुका था। तब 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता की रूपरेखा प्रस्तुत की। इस योजना में यह प्रावधान रखा गया कि आज़ादी के बाद देशी रियासतें स्वतंत्र मानी जाएंगी, और वे अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकती हैं। यह परिस्थिति भारतीय नेताओं के सामने एक विकराल समस्या बनकर उभरी। रियासतों के इस जटिल प्रश्न के समाधान के लिए भारत सरकार ने रियासत विभाग (States Department) की स्थापना की जिसका कार्यभार 5 जुलाई 1947 को सरदार पटेल को सौंपा गया।
लौहपुरुष की कूटनीति और एकता का सूत्रपात
लॉर्ड माउंटबेटन ने सरदार पटेल के सुझावों को मान्यता दी जिसके बाद 25 जुलाई 1947 तक अधिकांश रियासतों ने “Instrument of Accession” पर हस्ताक्षर कर भारत में विलय का निर्णय ले लिया। केवल कुछ बड़ी रियासतें कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ प्रारंभ में विवादित रहीं परंतु बाद में वे भी भारतीय संघ का हिस्सा बन गईं।
छत्तीसगढ़ रियासतों के विलय की ऐतिहासिक बैठक
डॉ. पांडेय बताते हैं कि छत्तीसगढ़ क्षेत्र की देशी रियासतों के विलय के लिये सरदार वल्लभभाई पटेल अपनी पुत्री मणिबेन पटेल, सचिव वी.पी. मेनन एवं अन्य अधिकारियों के साथ 15 दिसंबर 1947 को विशेष विमान से नागपुर पहुंचे।
हवाई अड्डे पर गवर्नर मंगलदास पकवासा, मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल, द्वारिका प्रसाद मिश्र सहित कई गणमान्य नेताओं ने उनका स्वागत किया। वहां से सरदार पटेल सीधे गवर्नमेंट हाउस में आयोजित रियासतों के शासकों की बैठक में पहुँचे।
ऐतिहासिक निर्णय की रात
शाम 4:30 बजे प्रारंभ हुई बैठक में छत्तीसगढ़ की 14 में से 12 रियासतों के शासक और 2 रियासतों के दीवान उपस्थित हुए। सरदार पटेल ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा जो योजना भारत सरकार की ओर से प्रस्तुत की जा रही है। उसे स्वीकार करना सभी के हित में है। जो रियासत नहीं चाहती, वह स्वतंत्र रह सकती है।
बैठक में कोरिया, कवर्धा सहित कई रियासतों के शासकों ने अपनी समस्याएँ रखीं। सचिव वी.पी. मेनन ने विचार के लिए 2 घंटे का समय दिया। रात 10 बजे पुनः बैठक प्रारंभ हुई। कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिंह ने मांग रखी कि “प्रिवीपर्स” (राजपरिवारों की आजीवन आय) को स्थायी रूप से सुनिश्चित किया जाए। इस पर सरदार पटेल ने कहा की जो समझौता किया जा रहा है। वह भारत सरकार की गारंटी है और संविधान में इसका स्थान सुरक्षित रहेगा।
आखिरकार सभी रियासतों के शासकों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए। बीमार होने के कारण चांगभखार और जशपुर के शासक बाद में 30 दिसंबर 1947 को हस्ताक्षर कर सके।
अंततः 1 जनवरी 1948 को छत्तीसगढ़ की सभी रियासतें जिनमें कोरिया और चांगभखार भी शामिल थे। भारतीय संघ में सम्मिलित हो गईं।
निष्कर्ष
डॉ. विनोद पांडेय कहते हैं कि
भारत की एकता और अखंडता की नींव सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने दृढ़ निश्चय और अद्वितीय प्रशासनिक कौशल से रखी थी। उनका योगदान ना केवल इतिहास का अध्याय है, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा भी है।


















