गोहराडू की ‘लूट’ में ‘सिंडिकेट’ का हाथ?
पायरी–देवगांव क्षेत्र में हरद बीट से बेखौफ निकल रही रेत, प्रशासन पर मिलीभगत के गंभीर आरोप
मित्तल महरा की रिपोर्ट
जमुना कोतमा सरकारी आदेशों और प्रतिबंधों को ठेंगा दिखाते हुए इन दिनों ग्राम पंचायत पायरी क्रमांक 1, देवगांव और देखल के बांधवाटोला क्षेत्र से होकर बहने वाली गोहराडू नदी रेत माफियाओं के कब्जे में नजर आ रही है। प्रशासनिक सख्ती और प्रतिबंधों के तमाम दावे कागज़ों तक सीमित हैं — क्योंकि मैदान में रेत का अवैध उत्खनन खुलेआम और दिनदहाड़े जारी है
रोजाना सैकड़ों ट्रैक्टर नदी का सीना चीरकर रेत की चोरी कर रहे हैं, और यह सब कुछ वन विभाग के हरद बीट व देवगांव क्षेत्र में हो रहा है — जहाँ कागजों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू है। सूत्रों के मुताबिक, हरद बीट, देवगांव और देखल क्षेत्र अब अवैध खनन का सबसे बड़ा अड्डा बन चुके हैं, जहाँ दिन-रात ट्रैक्टरों की आवाजाही बनी रहती है और पूरा प्रशासनिक अमला मूकदर्शक बना हुआ है
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह लूट किसी छोटे-मोटे गिरोह का काम नहीं, बल्कि एक संगठित सिंडिकेट का हिस्सा है, जिसमें पुलिस, वन विभाग, खनिज विभाग और प्रभावशाली ठेकेदारों की मिलीभगत शामिल है। ग्रामीणों का आरोप है कि इस अवैध कारोबार से सरकार को लाखों रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है, जबकि कुछ अधिकारियों की जेबें भर रही हैं।
फुनगा चौकी क्षेत्र में भी यह अवैध रेत परिवहन जोरों पर है, जहाँ रात के समय ट्रैक्टर बिना रोक-टोक के गुजर रहे हैं। पुलिसिया नियंत्रण पूरी तरह से निष्क्रिय या जानबूझकर विफल कर दिया गया है। इसी शिथिलता और संरक्षण के कारण गोहराडू नदी का पारिस्थितिक संतुलन खतरे में है। लगातार रेत निकाले जाने से नदी की गहराई, प्रवाह और किनारों का स्वरूप तेजी से बिगड़ रहा है, जिससे खेती और भूजल स्तर पर भी विपरीत असर देखा जा रहा है।
कई ट्रैक्टर चालकों ने यह खुलासा किया है कि वे ठेकेदार से लेकर स्थानीय संबंधित अधिकारियों तक को पैसा देते हैं, तभी उन्हें नदी से रेत निकालने और परिवहन करने की खुली छूट मिलती है। इससे साफ है कि यह अवैध कारोबार एक सुनियोजित और संरक्षण प्राप्त नेटवर्क के तहत चल रहा है।
ग्रामीणों ने प्रशासन से इस ‘रेत सिंडिकेट’ पर तत्काल रोक लगाने, दोषी अधिकारियों की जांच कराने और नदी क्षेत्र की नियमित निगरानी की मांग की है।
फिलहाल, क्षेत्र में चर्चा का सिर्फ एक सवाल गूंज रहा है
क्या गोहराडू की रेत को बचाया जा सकेगा, या यह ‘सिंडिकेट’ यूँ ही प्रशासन की आंखों में धूल झोंकता रहेगा?


















