प्रतिनिधि नियुक्त करना: जिम्मेदारी से बचने या जनता को भ्रमित करने का साधन?
मनेंद्रगढ़। आम आदमी पार्टी के एमसीबी जिला अध्यक्ष रामाशंकर मिश्रा ने प्रतिनिधि नियुक्त किए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया व्हाट्सएप व सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से दी। उन्होंने कहा कि जनता जनार्दन को बड़े-बड़े सपने दिखाकर, तरह-तरह के प्रलोभन देकर, ऊल-जुलूल घोषणाओं के माध्यम से बरगलाया जाता है। चुनाव के समय जो नेता खुद को जनता का सेवक बताते हैं, वे चुनाव जीतते ही जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। अब एक नया चलन शुरू हो गया है — प्रतिनिधि नियुक्त करने का।
सांसद प्रतिनिधि, विधायक प्रतिनिधि, अब सरपंच प्रतिनिधि — यह सूची लगातार लंबी होती जा रही है। लेकिन इन पदों का कोई संवैधानिक आधार नहीं है। ये प्रतिनिधि किसी भी प्रकार से जनता द्वारा चुने नहीं गए होते, फिर भी इन्हें तमाम विभागों में बैठाकर असली जिम्मेदारियों से दूरी बना ली जाती है।
क्या यह केवल कार्यकर्ताओं को खुश करने और जनता को भ्रमित करने की एक चाल नहीं है?
नेताओं को यह समझना होगा कि जनता अब पहले जैसी नहीं रही। आज की जनता जागरूक है, सवाल पूछती है और जवाबदेही चाहती है। जब जनता ने किसी व्यक्ति को चुनकर जिम्मेदारी सौंपी है, तो वह उसी व्यक्ति से संवाद और जवाब मांगती है — न कि किसी स्वयंभू ‘प्रतिनिधि’ से।
यह स्थिति लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है। प्रशासन को चाहिए कि ऐसे असंवैधानिक प्रतिनिधियों की नियुक्तियों पर तत्काल रोक लगाए। और यदि यह परंपरा इसी तरह चलती रही, तो फिर सभी पंच, सरपंच, जनपद सदस्य और जिला पंचायत सदस्य भी अपने-अपने प्रतिनिधि नियुक्त कर लें — ताकि पूरा तंत्र ही ‘प्रतिनिधियों के प्रतिनिधियों’ से भर जाए।
लोकतंत्र में जवाबदेही का कोई विकल्प नहीं होता।
नेताओं को जनता की भावना को समझना होगा, वरना आने वाला समय उन्हें आईना जरूर दिखाएगा।