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नीलकंठ कंपनी ने किसानों को दिया धोखा! जमीन ली, रोजगार नहीं दिया, नेताओं की सिफारिश पर बाहरी लोगों की भरती

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नीलकंठ कंपनी ने किसानों को दिया धोखा! जमीन ली, रोजगार नहीं दिया, नेताओं की सिफारिश पर बाहरी लोगों की भरती

आमाडांड ओसीपी में आदिवासी और ग्रामीण किसानों की आंखों में धूल झोंककर मुनाफा कमा रही कंपनी, प्रशासन बना मूकदर्शक

अनूपपुर ।जिन हाथों ने कभी धरती जोतकर देश को अनाज दिया, आज वही हाथ रोजगार की गुहार लगाते घूम रहे हैं। अनूपपुर जिले के जमुना-कोतमा क्षेत्र की आमाडांड ओपन कास्ट प्रोजेक्ट (ओसीपी) में किसानों की जमीन तो ले ली गई, लेकिन बदले में जो वादा किया गया था — रोजगार का — वो आज तक पूरा नहीं हुआ। नीलकंठ कंपनी को यहां 10 साल के लिए कोयला परिवहन और मिट्टी खुदाई का ठेका मिला। शर्त साफ थी — स्थानीय, विशेषकर जिनकी जमीन ली गई है, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर रोजगार मिलेगा। लेकिन हुआ उल्टा। कंपनी ने नेताओं की सिफारिशों और अफसरों की मिलीभगत से बाहरी लोगों को भरती कर लिया, और असली ज़मींदार आज मजदूरी को मोहताज हैं।

किसान बोले — हमें ठगा गया, हमारे साथ विश्वासघात हुआ। जिन घरों से कभी अन्न की खुशबू आती थी, वहां अब खाली बर्तनों की गूंज है। किसान भड़क उठे। बोले, हमसे कहा गया था कि जमीन के बदले नौकरी मिलेगी, लेकिन आज हमारे बच्चे बेरोज़गार हैं। नेता और अफसर अपनों को खपा गए, हमें भुला दिया गया।

ठेका तो मिला, लेकिन शर्तों की उड़ी धज्जियाँ

प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले कंपनी ने ग्रामीणों के साथ बैठकें कीं, कागज़ पर वादे हुए, अधिकारियों ने हामी भरी। लेकिन जैसे ही कॉन्ट्रैक्ट मिला, कंपनी ने अपना असली चेहरा दिखा दिया। अंदरखाने सेटिंग करके बाहरी राज्यों से कर्मचारियों को बुलाया गया, स्थानीयों को इंटरव्यू तक नहीं दिया गया। इस पूरे मामले में जिला प्रशासन की भूमिका भी शक के घेरे में है। आखिर क्यों नहीं हुई अनुबंध उल्लंघन की जांच? क्यों नहीं मांगी गई जवाबदेही? क्या अफसरों की चुप्पी मिलीभगत की गवाही नहीं दे रही?

ग्रामीणों की चेतावनी — अब आर-पार की लड़ाई होगी

गांववालों ने अब मोर्चा खोलने का ऐलान कर दिया है। अगर जल्द समाधान नहीं निकला तो आंदोलन होगा, धरना-प्रदर्शन होगा, और इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह शासन और कंपनी की होगी। जिन किसानों की जमीन ली गई, उन्हें तुरंत रोजगार दिया जाए,सभी बाहरी कर्मचारियों की जांच हो,नेताओं और अधिकारियों की भूमिका की उच्च स्तरीय जांच हो,कंपनी पर अनुबंध उल्लंघन का मामला दर्ज किया जाए ।अब सवाल उठता है — क्या विकास के नाम पर किसानों को यूं ही उजाड़ा जाता रहेगा? क्या ज़मीन के बदले धोखा ही नई नीति बन चुकी है?

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