महर्षि अगस्त्य प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान के प्रकाश स्तम्भ हैं
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के दिशा निर्देशन में आज इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में प्र.कुलपति ब्योमकेश त्रिपाठी के मार्गदर्शन में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के द्वारा हाइब्रिड के माध्यम से महर्षि अगस्त्य भारतीय संस्कृति के प्रकाश स्तम्भ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । इस अवसर पर मुख्य अतिथि डेक्कन कॉलेज स्नातकोत्तर एवं शोध संस्थान, मानद विश्वविद्यालय पुणे के माननीय *कुलपति प्रो. प्रसाद जोशी ने* कहा कि महर्षि अगस्त्य प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान के प्रकाश स्तम्भ हैं, जिन्होनें भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धातों को उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत से लेकर पश्चिम भारत तक प्रचार-प्रसार किया और भारतीय संस्कृति में समाहित वैज्ञानिक तथ्यों को भी उद्घाटित किया। कार्यक्रम में भारतीय प्राच्य विद्या उदयपुर, राजस्थान के डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने बीज वक्त्व्य देते हुए कहा कि महर्षि अगस्य ऋग्वैदिक कालीन ऋषियों में अग्रगण्य थे, जिन्होनें वेदों की अनेक ऋचाओं की रचना की एवं उनकी पत्नी लोपामुद्रा ने भी अनेक ऋचाओं की रचना की । महर्षि अगस्त्य ने स्वर्णभूमि- वर्मा, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया । राष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित भोज सम्मान से सम्मानित एवं महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय भोपाल के संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) निलिम्प त्रिपाठी ने कहा कि महर्षि अगस्त्य का उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत, रामायण एवं पुराणों में विशेष रूप से मिलता है और उन्होनें भारतीय संस्कृति के विस्तार में अपना अहम योगदान दिया है । कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. संजीव कुमार सिंह ,अंतरराष्ट्रीय राम कथा संग्रहालय, अयोध्या के निदेशक ने भारतीय कला, इतिहास एवं पुरातत्त्व में अगस्त्य के महत्त्व को रेखांकित किया । संगोष्ठी में वक्ता के रूप में डॉ. मुकुंद कृष्णन ने दक्षिण भारत के तमिल साहित्य में महर्षि अगस्त्य की भूमिका पर विशेष प्रकाश डाला । इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के वरिष्ठ प्रोफेसर आलोक श्रोत्रिय ने सभी अतिथियों का स्वागत किया एवं कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की । कार्यक्रम के संयोजक प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. मोहन लाल चढ़ार ने स्वागत भाषण दिया । विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. हरि नारायण मूर्ति सभी अतिथियों सहित विश्वविद्यालय के सभी सहभागियों का स्वागत किया । कार्यक्रम का संचालन प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्तव विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिवा कान्त त्रिपाठी ने किया।कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो.निधि जैन ने किया।में विश्वविद्यालय के आचार्य, सह-आचार्य, सहायक आचार्यों एवं शिक्षणेतर कर्मचारियों की सहभागिता रही । उक्त संगोष्ठी में प्रमुख रूप से विश्वविद्यालय के संकाय अध्यक्षों, विभागाध्यक्षों तथा बड़ी संख्या में विभाग के छात्र-छात्रा सम्मिलित हुए ।