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कोतमा गोविंदा के बीचोंबीच बारूद का गोदाम — प्रशासन की लापरवाही ने शहर को मौत के मुहाने पर ला खड़ा किया!

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कोतमा गोविंदा के बीचोंबीच बारूद का गोदाम — प्रशासन की लापरवाही ने शहर को मौत के मुहाने पर ला खड़ा किया!

रिपोर्ट: संतोष चौरसिया

कोतमा
शहर के बीचोंबीच, दीवारों से सटी बस्तियों और बच्चों के स्कूल के कुछ ही फासले पर गैस भंडारण और वितरण का अवैध धंधा धड़ल्ले से चल रहा है — मानो मौत को ही व्यापार बना लिया गया हो इंडेन अकरम गैस एजेंसी कोतमा का यह गोदाम अब कोतमा के लोगों के सिर पर टंगी बारूद की तलवार बन चुका है लेकिन जिला प्रशासन, नगरपालिका और फायर विभाग — सबके सब या तो अंधे बने हैं या जानबूझकर आंखें मूंदे बैठे हैं यह नींद नहीं, यह “भ्रष्ट चुप्पी” है जनता के टैक्स से सैलरी लेते हैं पर काम मुफ्त का — कुर्सी तोड़ना रह गया है

यह गोदाम किसी अपराध की प्रयोगशाला जैसा है, जहाँ नियम, कानून और सुरक्षा सबका गला घोंट दिया गया है भारत सरकार के Petroleum and Explosives Safety Organisation (PESO) और Oil Industry Safety Directorate (OISD) के स्पष्ट मानक हैं कि किसी भी गैस भंडारण केंद्र को आवासीय क्षेत्र, स्कूल या सार्वजनिक भवन से कम-से-कम 100 मीटर दूरी पर होना चाहिए

लेकिन यहाँ चारों ओर मकान हैं, बच्चों की स्कूल बसें रोज़ इसी रास्ते से गुजरती हैं, और गलियाँ इतनी तंग हैं कि अगर एक ट्रक फँस जाए तो न फायर ब्रिगेड अंदर जा सकेगी, न एंबुलेंस अगर हादसा हुआ — तो पूरा इलाका एक ही झटके में राख में बदल जाएगा, और फिर शुरू होगा वही पुराना सरकारी नाटक — “जांच जारी है।”

स्थानीय नागरिकों ने बार-बार शिकायतें दीं, पत्र लिखे, वीडियो भेजे — लेकिन प्रशासनिक मशीनरी ने कान पर जूं तक नहीं रेंगने दी ऐसा लगता है जैसे कोतमा को किसी खतरनाक प्रयोग की प्रयोगशाला बना दिया गया है — जहाँ देखा जा रहा है कि कब बारूद भड़केगा और कितने घर जलेंगे। यह संवेदनहीनता अब शहर में उबाल बन चुकी है

अगर यह गोदाम बिना वैध PESO लाइसेंस और फायर अनुमति के संचालित हो रहा है, तो यह भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 281 का खुला उल्लंघन है — “जनसुरक्षा को खतरे में डालना” लेकिन अफसरों की दुनिया में नियम सिर्फ़ किताबों तक सीमित हैं यहाँ फाइलें खुलती हैं, चाय रखी जाती है, “जांच होगी” कहा जाता है — और अगले ही दिन मौत का गोदाम फिर से सिलेंडरों से भर दिया जाता है

अब कोतमा गोविंदा कॉलोनी के लोगों में डर नहीं, गुस्सा है। स्थानीय निवासी कहते हैं 

“हम रोज़ इस बारूद के बीच सांस लेते हैं बच्चों को स्कूल भेजते हैं तो डर लगता है कि लौटकर आएँगे भी या नहीं।”
यह आवाज़ अब चेतावनी बन चुकी है लोग साफ़ कह रहे हैं कि अगर इस गोदाम को तुरंत आबादी से बाहर नहीं हटाया गया, तो वे सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे क्योंकि यह सिर्फ़ सुरक्षा का नहीं, उनके बच्चों की ज़िंदगी का सवाल है

अगर प्रशासन ने नियमों का पालन किया होता, तो यह गैस भंडारण केंद्र कभी आबादी के बीच नहीं बनता जहां पर की गोदाम के बगल में श्रमिक कॉलोनी और यहां तक की कॉलोनी का अंडरग्राउंड माइन्स भी संचालित है लेकिन यहाँ तो नियमों की किताबें टेबल सजाने के लिए रखी हैं। PESO, BIS, OISD जैसे नाम सिर्फ़ सरकारी कागज़ों की शोभा हैं, ज़मीन पर नहीं

कोतमा में सुरक्षा “कागज़ पर” है, और मौत “हकीकत में।”

अब सवाल यह नहीं कि यह गोदाम वैध है या अवैध — सवाल यह है कि प्रशासन आखिर किसके इशारे पर मौन है? क्या यह मौन किसी रिश्वत की कीमत है, या किसी सियासी संरक्षण की गारंटी? जनता पूछ रही है, लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं

प्रशासन को समझना होगा कि “खामोशी भी अपराध होती है

यह खामोशी अब कोतमा गोविंदा कॉलोनी कोयलांचल क्षेत्र की बरबादी की प्रस्तावना बन चुकी है इंडेन अकरम गैस एजेंसी कोतमा केवल एक खतरा नहीं, बल्कि आने वाले विनाश की गिनती शुरू कर चुका है
और अगर अब भी कोई अधिकारी यह सोचता है कि यह खबर सिर्फ़ अख़बार की स्याही में सिमट जाएगी — तो वह भूल रहा है

क्योंकि जब आग उठेगी, तो वह सिर्फ़ गोदाम नहीं जलाएगी — उन कुर्सियों को भी झुलसा देगी जिन पर बैठे लोग आज तमाशबीन बने हैं

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