गोंडवाना सांस्कृतिक मैदान के पट्टे पर विवाद गहराया, गोगपा ने मंत्री को सौंपी शिकायत
जनजातीय अस्मिता और सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक गोंडवाना सांस्कृतिक मैदान को लेकर चल रहा विवाद अब सिर्फ ज़मीन का मामला नहीं रह गया है—यह प्रशासनिक भरोसे, वादों की विश्वसनीयता और आदिवासी समुदाय के आत्मसम्मान से जुड़ा प्रश्न बन चुका है।ग्राम भल्लौर स्थित ख. सं. 491 व 492 की भूमि पर वर्षों से गोंडवाना समाज अपने सांस्कृतिक आयोजन करता आ रहा है। इसे सामुदायिक वनाधिकार पट्टे के रूप में मान्यता दिलाने की मांग को लेकर गोंडवाना समाज के प्रतिनिधियों ने 20 मई को ग्राम कठौतिया में आयोजित सुशासन समाधान शिविर में शिकायत सौंपी।गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के जिलाध्यक्ष केवल सिंह मरकाम के अनुसार, उक्त भूमि को पूर्व में एमसीबी कलेक्टर द्वारा धान संग्रहण केंद्र के लिए अस्थायी रूप से आरक्षित किया गया था। तब कलेक्टर डी. राहुल वेकट ने स्वयं ग्रामवासियों को दस्तावेज़ पूर्ण कर सामुदायिक पट्टे के लिए आवेदन करने की सलाह दी थी, और प्रशासनिक सहयोग का भरोसा दिलाया था
परंतु आज वही प्रशासन उस वादे से मुकर रहा है। केवल सिंह मरकाम और कोया पुनेम गोंडवाना महासभा के जिलाध्यक्ष जगजीवन सिंह उईके के अनुसार एक ‘प्रशासनिक षड्यंत्र’ है—जो जनजातीय भावनाओं को आहत कर रहा है। सवाल यह है कि यदि पहली बार प्रशासन ने मौखिक रूप से सहमति दी थी, तो दोबारा आवेदन पर इनकार क्यों?इस सवाल की गूंज अब राजनीतिक गलियारों तक पहुंच गई है। कैबिनेट मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को मामले की जानकारी दी गई, जिन्होंने तत्परता दिखाते हुए कलेक्टर को निर्देश दिया कि गोंडवाना समाज के साथ अन्याय न हो। मंत्री ने प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया कि उचित कार्यवाही होगी और न्याय सुनिश्चित किया जाएगा
यह मामला बताता है कि किस तरह एक वादा, जब निभाया नहीं जाता, तो वह एक पूरी कौम के भरोसे को हिला सकता है। गोंडवाना समाज के लिए यह भूमि केवल मिट्टी नहीं, उसकी सांस्कृतिक पहचान और आत्मगौरव की प्रतीक है। प्रशासनिक निर्णयों में संवेदनशीलता और पारदर्शिता की दरकार है, विशेष रूप से तब, जब बात हाशिए पर खड़े समुदायों की हो