पूर्व सचिव रमेश विश्वकर्मा और रोजगार सहायक रमेश कुमार ने उड़ाए ₹5 लाख!
सकोला पंचायत में पंचम वित्त आयोग की राशि पर फर्जी बिलों से खुली लूट
पूर्व सचिव रमेश विश्वकर्मा और वर्तमान रोजगार सहायक की साझेदारी में पंचम वित्त आयोग की लूट!
ग्राम सकोला बना घोटाले का पर्याय, नियम-कानून को ताक पर रखकर निकाली गई राशि
अनूपपुर | विशेष रिपोर्ट – संतोष चौरसिया
“विकास” शब्द जब सरकारी दस्तावेज़ों तक सीमित रह जाए, और गाँव की गलियों में गड्ढे, अंधेरे और गंदगी पसरी हो, तब समझ लेना चाहिए कि जनता के हक का पैसा कहीं और पहुँच गया है। अनूपपुर ज़िले की ग्राम पंचायत सकोला आज इसी कड़वी सच्चाई का उदाहरण बन चुकी है, जहाँ पंचम वित्त आयोग से प्राप्त लाखों रुपये की राशि का निकासी नियमों के घोर उल्लंघन के साथ किया गया, और अब यह मामला धीरे-धीरे एक घोटाले का रूप लेता जा रहा है
ग्राम पंचायत सकोला में पूर्व सचिव रमेश विश्वकर्मा और वर्तमान रोजगार सहायक की आपसी साठगांठ से योजनाओं के नाम पर फर्जी बिलों और फर्जी खरीद की मोटी रक़म निकाली गई। ग्रामीणों के अनुसार लगभग 4 से 5 लाख रुपये की राशि सिर्फ़ कागज़ों में खर्च हुई दिखाई गई, ज़मीनी स्तर पर उसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला। काम न हुए, सामग्री नहीं आई, निरीक्षण नहीं हुआ, फिर भी भुगतान हुआ — ये सब बातें सीधे-सीधे भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती हैं
चौंकाने वाली बात यह है कि अधूरे या हुए ही नहीं कार्यों के नाम पर बनावटी बिल प्रस्तुत कर लाखों की निकासी दिखाई गई, जिनमें सामग्री की कीमत बाजार भाव से 10 गुना तक लिखी गई। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, यह घोटाला ‘कट’ की पूर्वनिर्धारित व्यवस्था पर चलता रहा, जहाँ आपूर्ति या सेवा बिना दिए भी आधा भुगतान पूर्व सचिव और आधा वर्तमान रोजगार सहायक के पास पहुँचता रहा।
नियम तो साफ़ हैं, लेकिन पालन न होना ही सबसे बड़ा। भ्रष्टाचार है
मध्यप्रदेश पंचायत (सामग्री एवं सामान क्रय) नियम, 1999 के अनुसार:
₹500 से ₹15,000 तक की खरीदी के लिए न्यूनतम तीन कोटेशन आवश्यक हैं। ,15,000 से अधिक की राशि पर सार्वजनिक टेंडर की अनिवार्यता है।,हर सामग्री या सेवा की खरीदी ग्रामसभा की स्वीकृति और खरीदी समिति की बैठक के उपरांत ही की जा सकती है। कार्य आरंभ करने से पहले स्थल निरीक्षण, प्रमाणन और भुगतान से पहले फिजिकल वेरिफिकेशन अनिवार्य है।
लेकिन सकोला में इन मानकों को पूरी तरह कुचल दिया गया। न कोई टेंडर हुआ, न कोटेशन, न समिति की बैठक, न स्थल निरीक्षण। कागज़ों में सब ‘पूरा’ और गाँव में सब ‘ग़ायब’। यह कोई लापरवाही नहीं, बल्कि योजनाबद्ध आर्थिक अपराध है
जब निकासी नियमों के अनुसार नहीं हुई, तो यह “ग़लती” नहीं, “भ्रष्टाचार” है जब किसी योजना की राशि निकासी में नियमों का पालन नहीं होता—न टेंडर, न कोटेशन, न ग्रामसभा, न समिति, न निरीक्षण—तो यह महज “गलती” या “दुरुपयोग” नहीं, बल्कि सरासर भ्रष्टाचार है। यह भारतीय न्याय संहिता की धारा 314 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(c) व 13(2) के तहत गंभीर अपराध है, जिसमें 4 से 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। नए आपराधिक कानूनों ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य और समयबद्ध जांच के जरिए ऐसी बेईमानी पर और सख्ती बरतने का रास्ता खोला है, ताकि लोक सेवकों की जवाबदेही सुनिश्चित हो और जनता का पैसा सही जगह पहुंचे
जनपद सीईओ की भूमिका सबसे अधिक संदेहास्पद
सबसे चिंताजनक बात यह है कि जनपद पंचायत अनूपपुर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिन पर नियामक और निरीक्षण की जिम्मेदारी थी, वे पूरे प्रकरण में या तो मौन बने रहे, या सहभागी। जब हजारों लाखों की निकासी हुई, और कोई निरीक्षण नहीं किया गया, तो यह चुप्पी लापरवाही नहीं बल्कि ‘भागीदारी’ जैसी प्रतीत होती है। नियमों के खुले उल्लंघन के बावजूद यदि किसी अधिकारी ने कोई संज्ञान नहीं लिया, तो वे भी समान रूप से उत्तरदायी हैं।
गाँव में आक्रोश — “अब हमें न्याय चाहिए”
ग्राम सकोला में लोगों का आक्रोश चरम पर है। बुज़ुर्ग, महिलाएँ और नौजवान सभी जिला प्रशासन और कलेक्टर से इस प्रकरण की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जाँच की माँग कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह सिर्फ़ एक सचिव का कारनामा नहीं हो सकता — इसमें जनपद और विभागीय अधिकारियों की भी संलिप्तता है। जब नियम ही नहीं माने गए, तो इस निकासी को वैध कैसे कहा जा सकता है?
सरकार को करनी होगी सख़्त कार्यवाही
अब समय है कि शासन इस मामले को सिर्फ़ ‘सूचना लेकर जाँच करेंगे’ जैसे बहानों में न उलझाए, बल्कि एफआईआर दर्ज कर, दोषियों पर आपराधिक कार्यवाही शुरू करे। यदि इस तरह की लूट को बर्दाश्त किया गया, तो यह मॉडल अन्य पंचायतों में भी फैल जाएगा और ग्रामीण विकास एक छलावा बनकर रह जाएगा
ग्राम सकोला की कहानी सिर्फ़ एक गाँव की नहीं है। यह पूरे पंचायती प्रशासन के सामने खड़ा आईना है — जिसमें झाँकने की अब सख़्त ज़रूरत है