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फूलों की होली में सराबोर हुए दो प्रदेशों के द्वय मंत्री, भागवत कथा के समापन अवसर पर आयोजित थी फूलों की होली

फूलों की होली में सराबोर हुए दो प्रदेशों के द्वय मंत्री, भागवत कथा के समापन अवसर पर आयोजित थी फूलों की होली

यदुवंश के नाश का मूल कारण नशा था – कथा वाचक

एमसीबी/चिरमिरी – ये वही ब्राह्मण है जिसने तुम्हारे विवाह का प्रस्ताव मेरे पास लेकर आया था तभी मैं आपको वरण कर पाया, उक्त बाते कथा वाचक मृदुल कृष्ण शास्त्री द्वारा भागवत कथा के ब्रम्हज्ञानी सुदामा जी द्वारा अपने परम श्रद्धेय द्वारकाधीश भगवान कृष्ण सखा से उनके मिलने के प्रसंग पर कही। सुदामा जी की पत्नी के बार बार कहने पर सुदामा जी जब फटे पुराने धोती को पहने द्वारिकानगरी पहुंचे और द्वारपाल से कहा कि कन्हैया को जाकर कह दो कि तुम्हारे दर पर गरीब ब्राह्मण सुदामा मिलने आया है। द्वारपाल का संदेश पाते ही भगवान के चेहरे में अपने भक्त, सखा से मिलने को लेकर जो उतावला पन था उस भाव को बताते हुए भजनों की श्रृंखला से भक्त और भगवान के इस प्रेम में पूरा वातावण भक्ति रस में डूब गया। कथा स्थल में मौजूद भक्त खुद को रोक नहीं पाए और राधा रानी की जयकार से कथा स्थल गुंजायमान हो गया।

श्रीमद्भागवत में भगवान ने किया है विश्राम

चिरमिरी की धरती में तीसरी बार कथा का वाचन कर रहे प्रख्यात आचार्य मृदुल कृष्ण शास्त्री ने भगवान के विश्राम के प्रसंग को सुनाते हुए कहा कि ठाकुर जी अलग अलग समय में कई जगह विश्राम किए है, कभी छीर सागर तो कभी बैकुंठ तो कभी मृत्युलोक लेकिन भगवान भगवत में कहते है उनका अंतिम विश्राम श्रीमदभागवत में है। श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करने वाला बैकुंठ को प्राप्त करता है, श्री आचार्य ने कहा कि आप जीवन में दो बातों को अवश्य लागू करे, एक राम कृष्ण का नाम क्योंकि इससे बड़ा चीज जग में कुछ नहीं है। आपके द्वारा राम का नाम ही आप पर आने वाली विपदा को समाप्त कर देगा, आपके जीवन से बुराइयां धीरे धीरे खत्म होने लगेगी, आपका जीवन आध्यात्म की ओर बढ़ेगा और आप सतमार्ग पर चलने लगेगे। घर परिवार में सुख समृद्धि का संचार होगा।

श्री आचार्य ने कथा के प्रसंग में यदु वंश के नाश का मूल कारण नशा को बताया, उन्होंने कथा के प्रसंग में कहा कि भागवत में है कि माह में दो पक्ष आते है कृष्ण और शुक्ल, जो 15 दिनों में कभी 14, 15 तो कभी 16 का होता है लेकिन जब 13 दिनों का पक्ष आया तब भगवान समझ गए कि अब गड़बड़ होने वाला है। भगवान सभी यदु वंश को लेकर एक स्थान पर गए, स्नान कराया और इस पक्ष के गुजर जाने और यदु वंश को बचाने की कोशिश की लेकिन पवित्र होते हुए भी घाट पर ही यदु शराब के सेवन कर जुआ खेलने में मस्त हो गए, परिस्थितियों अनुकूल नहीं रही, आपस में ही मार काट झगड़ा चालू हो गया, बलराम जी इस मंजर को देख नहीं पाए और समाधी ले ली किंतु भगवान सब कुछ देखते रहे, काल का विपरीत प्रभाव इसलिए हावी हुआ क्योंकि शराब सबके हलक से नीचे जा चुका था, सतमार्ग से सभी विभूख हो चुके थे, आपस का प्रेम विद्रोह में बदल गया था और यही यदु वंश के नाश का कारण बना इसलिए मदिरा का सेवन करने से बचे, भगवान ने भागवत में इसका उल्लेख कर मानव जीवन को संकेत देने का काम किए है और इसे हमे अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है।

फूलों की होली में भक्त, भगवान समेत द्वय मंत्री हुए सराबोर

सात दिनों से चिरमिरी के गोदरीपारा में अप्रवासी भारतीय चंद्रकांत पटेल एवं श्रीमद भागवत सेवा समिति द्वारा आयोजित भागवत कथा के अंतिम और समापन अवसर पर भक्त और भगवान के बीच फूलों की होली का आयोजन किया गया। भगवान के भजनों की भक्ति रस संचार के बीच राधा रानी का जयघोष गूंजता रहा, भक्त और भगवान फूलों की होली में झूमते रहे इसी बीच दो प्रदेश के मंत्री में छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल और मध्यप्रदेश से कथा में शामिल हुए कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग मंत्री दिलीप जायसवाल भी जमकर फूलों की होली खेली। द्वय मंत्री के साथ स्वास्थ्य मंत्री की पत्नी श्रीमती कांति जायसवाल, आचार्य मिथलेश महराज, भाजपा जिलाध्यक्ष चंपा देवी पावले, चिरमिरी नगर निगम के निर्वाचित महापौर राम नरेश राय, मध्यप्रदेश में अनूपपुर जिले के भाजपा पूर्व महामंत्री प्रेमचंद यादव भी मौजूद रहे। कथा को विश्राम देते हुए आचार्य मृदुल कृष्ण शास्त्री ने भगवान के सच्चे भक्त होने का संदेश दिया, इस संदेश में परोपकार, जगत का कल्याण और मानव जीवन के उद्धार का बोध था। आचार्य जी ने कथा के समाप्ति की घोषणा करते हुए कथा का श्रवण कर रहे भक्तों से दक्षिणा स्वरूप जो मांग की वह उपस्थित भक्तों में भक्ति रस का संचार करने और सतमार्ग में चलने का उपदेश रहा। श्री आचार्य ने दक्षिणा में सभी भक्तों को उनके दुर्गुण विचार, बुराइयों को अपनी झोली में डालने का आह्वान कर भगवान की असीम कृपा पाने का आशीर्वाद दिया और फिर से एक बार चिरमिरी की धरती में भगवान की कथा का वाचन करने का न्योता स्वीकार किए।

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